भारत !! एक ऐसा देश जिसमे न जाने कितने त्यौहार मनाए जाते हैं । मुझे हर पर्व का ज्ञान तो नहीं है परन्तु इतना आवश्य कह सकता हूँ कि लग भग रोज ही कोई न कोई पर्व होता है । इसके पीछे एक ये भी कारण है कि हमारे देश मे हर २०० किलोमीटर पर लोगो की भाषा व उनकी जीवन शैली बदल है। हर धर्म के लोग हर जाती के लोग ओर उन सभी का अपना एक तोर तारीका भारत को एक साँस्कृतिक देश के तोर पर विश्व के समक्ष रखता है। कहा जाता है की इस पुरे विश्व मे से भारत ही ऐस देश है जहाँ सबसे पहले संस्कृति आइ जहाँ लोगो को जीवन यापन के मायने पता चले। परन्तु आज २१ वीं सदी में मैं अपने इसी सांस्कृतिक देश की ओर देखता हूँ तो पाता हुँ कि हम अपनी सांस्कृति को बनाये रखने मे भी सक्षम नहीं रहे हैं। अँग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आज जब इस देश का लोकतांत्रिक पर्व का समापन हो रहा है, तो लोगों कि ये आशा है कि जो भी नई सरकार आऐगी वह हमे साफ़ पीने का पानी दिलाएगी, हमारे देश के गाँवों-गाँवों तक बिजली पहुंचाएगी हमारे देश को एक शक्तिशाली एवम आर्थिक मजबूती दिलाएगी।
पिछले ८ माह में ऐसा लगा जैसे न जाने कितने साल गुजर गये आज़ादी से लेकर अब तक जो कुछ भी इस देश में हुआ वो सब याद दिलाया गया परन्तु क्या तो देखा हमने और क्या सीखा हमने अपनी उन गलतियों से जो हमारे पूर्वज पिछले ६६ वर्षो से करते आ रहे हैं। हर ५ साल बाद एक ही परिवार के हथो मे अपने देश सौंप कर ये समझते हैँ कि हमारे देश को चलाना इन्ही क काम है ओर ४ सालों तक ये देख कर अपना मन जलाते रहते हैं कि इस सरकार ने तो कोइ काम ही नहीं किया हमारे लिए हमारे देश कि सांस्कृति के लिये। एक ऐसा परिवार जिसने अंग्रेजों से ये भेलि भॉंति सीखा कि देश को बाँट कर कैसे अपनी जेब भरी जाएं ऐसा क्या किया जाए जिसे बस हम सत्ता मे बने रहे। हर पाँच वर्षो चार वर्षों तक कुछ भी करना परन्तु जैसे कार्यकाल समाप्ति का ये देश की जनता समक्ष झूठी नीतियों से उनके दिमागपर छाप छोड़ना जिससे की फिर से अगले ५ वर्षों के लिए वह सत्ता में बने रहे और देश को लूटते रहे।
परन्तु इन सब के बीच देश में एक ऐसा नेता उभर के आया जिसने देश में उन्नति की एक नई किरण जगाई। जिसने लग भग ३ लाख किलो मीटर का सफर इस आशा में तय किया की हमारे देश को कुशासन से मुक्ति मिले हमारे देश के युवाओं में नया जोश व उत्साह जगाया जा सके और जब अंततः चुनाव प्रचार शांत हुआ तो ये स्पष्ट देखा गया की देश के युवाओं में उत्साह जाग चुका था। चाहें फिर इस देश के युवा ने अपना मत किसी को भी दिया हो परन्तु यह बात की, इस देश के युवा शांत नहीं बैठे हैं, तब सिद्ध गई, जब, देश में मत प्रतिशत के नए कीर्तिमान स्थापित हो गए। आज इस देश में जिधर भी देखिये जिसको भी देखिए एक चाय बेचने वाले पर चर्चा हो रही है। मुझे ये तो नहीं पता की मनाइये श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने जीवन में कभी चाय बेचीं भी या नहीं परन्तु में इतना अवश्य जनता हूँ की उनकी इस कथित जीवनी से न केवल इस देश के लोग आश्चर्यचकित एवं प्रेरित हैं अपितु गोर्वान्कित भी हैं की हमारे देश में हर व्यक्ति विशेष को एक सामान अधिकार मिले हैं चाहें वो किसी भी जाती, समुदाये या धर्म का क्यों न हो।
आज १६ मई २०१४, का दिन भारत वर्ष के इतिहास में एक अनूठी छाप छोड़ जायेगा। आज पुरे विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के लोकतंतांत्रिक महोत्सव का भव्य उत्सव होगा। परन्तु इस भव्य उत्सव का का परिणाम हमारे देश के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। एक तरफ तो वह सभी ताकतें हैं जो देश को पिछले ६६ वर्षों से प्रगति के नाम पर इस देश के युवाओं से खिलवाड़ करती आ रही हैं वहीं दूसरी और एक आशा की नई ज्योत जलाये एक ऐसा व्यक्ति है जो की कल के रवि को भारत का उदय मान रहा है और वहीँ इन दोनों के बीच एक ऐसे अति बुद्धिजीवी हैं जिनसे देश को आशा तो यह है की वह सही का समर्थन करें परन्तु इसके विपरीत वह देश को गुमराह करते हुए अहंकार से सम्पूर्ण एक नए कोहरे की तैयारी में जुट कर भारत को और पीछे ढकेल देना चाहते हैं जैसा की उन्होंने इस देश की राजधानी में किया कुछ वैसा ही सन्देश वह पुरे देश भर को देते आए हैं। तो देखना आज यह है की आखिर विजय किसके सर अति है।
इस जय पराजय बीच आज यह तो लग भग तय हो गया है की विजय चाहें किसी की भी हो इस देश ने यह तो देख ही लिया है की एक ६३ वर्ष की आयु के व्यक्ति ने किस तरह से ४९ साल के युवाओं को हर विभाग में पीछे करते हुए, भारत के नव सृजन की आशाओं को जागृत किया।
ऐसा कहा जाता है की " रेनू भर आशा ही सफलता की परिभाषा है "।
जय हिन्द !!!! जय भारत !!!
पिछले ८ माह में ऐसा लगा जैसे न जाने कितने साल गुजर गये आज़ादी से लेकर अब तक जो कुछ भी इस देश में हुआ वो सब याद दिलाया गया परन्तु क्या तो देखा हमने और क्या सीखा हमने अपनी उन गलतियों से जो हमारे पूर्वज पिछले ६६ वर्षो से करते आ रहे हैं। हर ५ साल बाद एक ही परिवार के हथो मे अपने देश सौंप कर ये समझते हैँ कि हमारे देश को चलाना इन्ही क काम है ओर ४ सालों तक ये देख कर अपना मन जलाते रहते हैं कि इस सरकार ने तो कोइ काम ही नहीं किया हमारे लिए हमारे देश कि सांस्कृति के लिये। एक ऐसा परिवार जिसने अंग्रेजों से ये भेलि भॉंति सीखा कि देश को बाँट कर कैसे अपनी जेब भरी जाएं ऐसा क्या किया जाए जिसे बस हम सत्ता मे बने रहे। हर पाँच वर्षो चार वर्षों तक कुछ भी करना परन्तु जैसे कार्यकाल समाप्ति का ये देश की जनता समक्ष झूठी नीतियों से उनके दिमागपर छाप छोड़ना जिससे की फिर से अगले ५ वर्षों के लिए वह सत्ता में बने रहे और देश को लूटते रहे।
परन्तु इन सब के बीच देश में एक ऐसा नेता उभर के आया जिसने देश में उन्नति की एक नई किरण जगाई। जिसने लग भग ३ लाख किलो मीटर का सफर इस आशा में तय किया की हमारे देश को कुशासन से मुक्ति मिले हमारे देश के युवाओं में नया जोश व उत्साह जगाया जा सके और जब अंततः चुनाव प्रचार शांत हुआ तो ये स्पष्ट देखा गया की देश के युवाओं में उत्साह जाग चुका था। चाहें फिर इस देश के युवा ने अपना मत किसी को भी दिया हो परन्तु यह बात की, इस देश के युवा शांत नहीं बैठे हैं, तब सिद्ध गई, जब, देश में मत प्रतिशत के नए कीर्तिमान स्थापित हो गए। आज इस देश में जिधर भी देखिये जिसको भी देखिए एक चाय बेचने वाले पर चर्चा हो रही है। मुझे ये तो नहीं पता की मनाइये श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने जीवन में कभी चाय बेचीं भी या नहीं परन्तु में इतना अवश्य जनता हूँ की उनकी इस कथित जीवनी से न केवल इस देश के लोग आश्चर्यचकित एवं प्रेरित हैं अपितु गोर्वान्कित भी हैं की हमारे देश में हर व्यक्ति विशेष को एक सामान अधिकार मिले हैं चाहें वो किसी भी जाती, समुदाये या धर्म का क्यों न हो।
आज १६ मई २०१४, का दिन भारत वर्ष के इतिहास में एक अनूठी छाप छोड़ जायेगा। आज पुरे विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के लोकतंतांत्रिक महोत्सव का भव्य उत्सव होगा। परन्तु इस भव्य उत्सव का का परिणाम हमारे देश के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। एक तरफ तो वह सभी ताकतें हैं जो देश को पिछले ६६ वर्षों से प्रगति के नाम पर इस देश के युवाओं से खिलवाड़ करती आ रही हैं वहीं दूसरी और एक आशा की नई ज्योत जलाये एक ऐसा व्यक्ति है जो की कल के रवि को भारत का उदय मान रहा है और वहीँ इन दोनों के बीच एक ऐसे अति बुद्धिजीवी हैं जिनसे देश को आशा तो यह है की वह सही का समर्थन करें परन्तु इसके विपरीत वह देश को गुमराह करते हुए अहंकार से सम्पूर्ण एक नए कोहरे की तैयारी में जुट कर भारत को और पीछे ढकेल देना चाहते हैं जैसा की उन्होंने इस देश की राजधानी में किया कुछ वैसा ही सन्देश वह पुरे देश भर को देते आए हैं। तो देखना आज यह है की आखिर विजय किसके सर अति है।
इस जय पराजय बीच आज यह तो लग भग तय हो गया है की विजय चाहें किसी की भी हो इस देश ने यह तो देख ही लिया है की एक ६३ वर्ष की आयु के व्यक्ति ने किस तरह से ४९ साल के युवाओं को हर विभाग में पीछे करते हुए, भारत के नव सृजन की आशाओं को जागृत किया।
ऐसा कहा जाता है की " रेनू भर आशा ही सफलता की परिभाषा है "।
जय हिन्द !!!! जय भारत !!!